Tuesday, October 31, 2006

घुमक्कडी जिन्दाबाद

कई दिन हो गये थे बिना कुछ लिखे हुए ,मन रोज कह्ता था कि कुछ लिख्नना है पर क्या करें यह आफिस लाइफ कुछ ऐसी ही है,रोज नये नये विषय मन में उमडते,पर जब तक उन्हे आपके सामने रखता तब तक तो ना जाने सारे विचार ना जाने कहाँ उड जाते।
आज मै डिस्कवरी चैनल पर ग्लोब ट्रेकर धारावाहिक देख रहा था, श्रीमान पैट्रिक मलेशिया के वर्षा वनों में विचरण कर रहे थे, और बस मेरा मन भी ,जो कि हमेशा घुमक्कडी के बारे में सोचता रहता है,पहुँच गया पुरानी यादोँ में।उन यादों में जो कि सभी मेरी यात्राओं से जुडी हैं, राँची का ज़ोन्हा जल प्रपात, माणा गाँव के 7 क़िमि. आगे वसुधारा तक की यात्रा(माणा गाँव बद्रीनाथ से 5 क़िमि. आगे है),या फिर मेरी गोआ यात्रा,या फिर कोचीन का आथिरापल्ली जल प्रपात,या फिर कुमाराकोम, नासिक के त्रयम्ब्केश्वर, उज्जैन के महाकालेश्वर,वाराणसी के काशी विश्वनाथ,पुरी के स्वामी जगन्नाथ,भुवनेश्वर के लिंगराज,सबरीमाला के श्री बाला जी,द्वारिका के द्वारिकाधीष या राजस्थान के रेत के समुन्दर, मैसूर की चामुन्डेश्वरी या वहाँ का राजसी महल,,,,,,,,,,बाप रे मुझे अब लग रहा है मै बहुत घूम चुका हूँ ,,,,,अरे ठहरिये अभी तो सूची में और भी जगह हैँ जैसे देहरादून के टपकेश्वर महादेव या वहाँ का बौद्ध मन्दिर और हाँ वन अनुसन्धान केन्द्र, ह्रिषिकेश,हरिद्वार का सुरम्य वातवरण, नैनीताल,मसूरी की वादियाँ,इलाहाबाद का संगम।मुझे खास तौर से पहाडों और समुद्र ने बहुत ही आकर्षित किया है, वैसे शायद अधिकांश लोगों की पसंद यही होगी,चलो ,,,मैं भी सही।

मेरी अब तक की सबसे यादगार यात्रा माणा गाँव से वसुधारा तक की ट्रेकिंग है,जिसमें मै और उसी गाँव का एक बन्दा जो कि उस यात्रा के दौरान मेरा साथी और मेरा गाइड,मेरा कुली सब कुछ था।सच में वह यात्रा हमेशा याद रहेगी।चारों तरफ हिम मन्डित शिखर,उन पर जब सूर्य भगवान बादलोँ के बीच से अपनी रश्मियाँ बिखेरते तो ऐसा लगता की कुबेर के राज्य के स्वर्ण पर्वत ऐसे ही होते होंगे।और दूर पहाडोँ के बीच से गर्जना के साथ बह्ती अलकनंदा नदीँ, गंगा जी की भाँति शिव की गझिन जटाओँ से गिरती हुई अपने दिव्य स्वरूप में दिखती है, बिना उन स्थानोँ पर पहुँचे आप सोच भी नहीं सकते, कि वे इतने सुन्दर हो सकते हैं।इस यात्रा के दौरान जो चित्र मैने लिये थे, उनमे से कुछ आप भी देखिये।

वसुधारा के रास्ते पर

अलकनंदा


सूनसान के सहचर


सरस्वती उदगम


वसुधारा (चित्र साभार –अंतरजाल)


(सारे चित्र सोनी के हैन्डीकैम एच.सी. 42 से लिये गये हैँ)

अब तो समय ही नहीं मिल पाता है ,बहुत दिन हुए कहीँ की यात्रा किए हुए ,बस चित्र देख कर ही अपने मन को ठन्डा कर लेता हूँ, जो भी हो जल्दी ही कहीँ की यात्रा का कार्यक्रम बनाऊँगा,ताकी मेरी घुमक्क्डी चलती रहे।



अभिषेक-फुरसत के रात दिन


Friday, October 13, 2006

भारतीय शास्त्रीय संगीत

आज आपसे भारतीय शास्त्रीय संगीत के बारे में कुछ चर्चा करता हूँ।जैसा कि आप सभी जानते हैं कि किसी भी संगीत के दो अंग होते ,,,स्वर एवं ताल। भारतीय मान्यता के अनुसार वेदों के रचयिता श्री बृम्हा जी के द्वारा संगीत के इन दोनो अवयवों की रचना की गयी।बृम्हा जी द्वारा यह ज्ञान शिव जी ,शिव जी से सरस्वती जी को , सरस्वती जी से नारद जी को,नारद जी से यह ज्ञान कृमशः यह ज्ञान गंधर्व,किन्नर एवं अप्सराओं के पास पहुँन्चा।बाल्यकाल की अवस्था में हनुमान जी को यह ज्ञान गंधर्व एवं अप्सराओं से मिला।तत्पश्चात हनुमान जी से यह ज्ञान धरती पर आया। संगीत के सात स्वर :
स : षणज
रे : ऋषभ
ग : गंधार
म : मध्यम
प : पंचम
ध : धैवत
न : निषाद
सा : षणज
इन स्वरों की उत्पत्ति मे कई मत है।यहां पर मैं तीन मतों के बारे मे लिख रहा हूँ।
प्रथम मतानुसार पशु पक्षिओं की आवाज से इन स्वरों का निर्माण हुआ-
मोर- स : षणज
चातक- रे : ऋषभ
बकरा- ग : गंधार
कॉवा- म : मध्यम
कोयल- प : पंचम
मेंढक- ध : धैवत
हाँथी - न : निषाद
एक अन्य मतानुसार जब हजरत मूसा पहाडों पर थे तब आकाशवाणी होने पर उन्होनें अपना असार (अस्त्र) जमीन पर पडे पथ्थर पर मारा था जिसके सात टुकडे हो गये थे एवं जमीन से पानी कि सात धारायें निकली थीं,इन्ही से इन सात स्वरों का निर्माण हुआ था।

फारसी मतानुसार मूसीकार पक्षी के गले मे बाँसुरी के समान सात छिद्र थे ,जिनसे इन सात स्वरों कि उत्पति हुई ।
चलिये अब कुछ चर्चा रागों के बारें के बारे में करते हैं।पर रागों को जानने से पहले आपको थाटों को जानना होगा,संगीत शास्त्र के अनुसार दस थाट होते हैंथाट को हम प्रमुख राग भी कह सकते हैं क्योकि इन्ही से अन्य सभी रागों की रचना हुई है।थाट ही सभी रागों की उत्पत्ति के जनक हैं।
प्रमुख थाट:

· बिलावल
· खमाज
· आसावरी
· भैरव
· भैरवी
· काफ़ी
· मारवा
· पूर्वी
· तोड़ी
· कल्याण

चलिये अब चर्चा बहुत हो गयी ,अपनी अवाज में आपको राग खमाज़ पर आधारित एक भजन सुनाता हूँ।एक बात और इसके बारे में भी लिखना ना भूलियेगा ।

अभिषेक -श्याम सुन्दर(राग-खमाज़)


Tuesday, October 10, 2006

मस्ती का आलम ,,,,सूफ़ी संगीत

कैलाश खेर ,
एक अजीब सी मस्त आवाज़ ,,जैसे दुनिया की सारी फ़क्कड़ई उन्ही में समाइ हो। कैलाश को सुनना एक नयी दुनिया में प्रवेश करने जैसा है.. उनके एलबम "कैलासा" के एक गाने का लिन्क दे रहा हूँ। सुनिये और बताइये आपने क्या मह्सूस किया।

कैलाश खेर - नैहरवा


Monday, October 09, 2006

मेरी दादी के लिये,,

निश्च्छल सरल मधुर अविकल ,

पितामही तू सतत अविचल ,

स्नेहसिग्ध प्रतिमूर्त्ति रूप,

मम प्राणमयी तू मातृ रूप,

कर उर प्रकाशित दे ज्ञान धूप,

मम पितु जननी तू देवि रूप
मम पितु जननी तू देवि रूप
मम पितु जननी तू देवि रूप

Tuesday, October 03, 2006

वो लम्हे ...

कल दोपहर ३ बजे ललित का फ़ोन आया ,बोला सर जी कहां हैं,,"घर पर ही हूँ" ऐसा बस मैने बोला ही था कि तुरन्त एक नया प्रश्न ,,पिक्चर देखने चलेगा क्या... ?अच्छा पहले तो आप सबको बता दूं ललित भाइ मेरे बडे पुराने मित्र हैं इस समय तो बागलकोट,कर्नाटक से डाक्टरी पढ रहे हैं ।हां तो हम कहां थे,,,हाँ हम पिक्चर देखने जा रहे थे,,मै जल्दी जल्दी तैयार हुआ और लखनऊ के हजरत गंज स्थित सहारा गन्ज मॉल की तरफ़ चल पडा..प्लॉन यही निर्धारित हुआ था की हम लोग वहीं मिलेन्गें।वहां तो पहुँच गये ,,अब यह सोचना था कि पिक्चर कौन सी देखी ये... हमारे पास दो विकल्प थे ,, वो लम्हे और प्यार के साइड एफ़ेक्ट,, तो निर्धारित यह हुआ कि वो लम्हे देखी जायेगी क्यों कि ललित भाइ ने पिक्चर की कुछ तारीफ़ सुनी थी,,,,तो टिकट लेने के पश्चात थोडी देर मॉल में घूम कर हम लोग हाल में प्रवेश कर गये..वो लम्हे ....महेश भट्ट द्वारा लिखित इस फिल्म के लिये महेश भट्ट ने कहा है कि यह फिल्म परवीन बाबी के जीवन पर ,,और उनके जीवन की सच्ची घटनाओं पर आधारित है खास तौर पर यह फ़िल्म महेश भट्ट और परवीन बाबी के रिश्तों पर आधारित है....पर जहाँ तक मुझे लगा कि यदि आप यह सब भूल कर इस फ़िल्म को देखेंगे तो आपको यह फ़िल्म और ज्यादा अच्छी लगेगी...क्योंकि कि कइ बार फ़िल्म मे प्रदर्शित हर द्रश्य को आप परवीन बाबी से जोड्ने लगते हैं और तब वह वास्तविक नही लगता,पर जो भी यदि आपको शिनॉय अहूजा और कन्गना के अभिनय से सजी,एक कसी पट्कथा पर आधारित फ़िल्म देखनी हो तो इसे जरूर देखें।आप दोनो के अभिनय की तारीफ़ किये बिना नही रहेंगे।फ़िल्म का सन्गीत भी काफी अच्छा है।।कुल मिला कर यही कहूँगा की फ़िल्म एक बार जरूर देखिये,,,अच्छी फ़िल्म है

Monday, October 02, 2006

महत्वपूर्ण दिवस

आज का दिन तो कुछ ज्यादा ही महत्वपूर्ण हो गया है....गांन्धी जी(जन्म दिवस) ,लाल बहादुर शास्त्री(जन्म दिवस),और फिर दशेहरा ,,,,खुशियां मनाने कि तीन वजह हो गयी हैं ।गांन्धी आज के युग में प्रासन्गिक ना होते हुए भी कुछ कारणों से प्रासन्गिक हो गये हैं... मेरा उन्हे यहां प्रासन्गिक ना कहने का अर्थ , आज के समाज मे उनकी पहुँच सिर्फ़ २ अक्टूबर के दिन ,या किताबों और नेताओं के भाषणों तक सीमित हो जाना है। परन्तु धन्यवाद विधु विनोद चोपड़ा जी को ,कि उन्होनें गांधी जी को फिर से जीवित कर दिया और न सिर्फ़ जीवित, अपनी फ़िल्म के माध्यम से लोगों को उनके सबक भी सिखा दिये.कितने ही अखबारों में आजकल रोज दिख रहा है कि फ़िल्म से प्रभावित हो कर व्यक्ति विषेश ने "गांधीगिरी" को अपना हथियार बना लिया .(फ़िल्म देखिये जल्दी से सब समझ में आ जायेगा कि आखिर ये गांधीगिरी क्या है)अच्छा ही है ना ,,,,शायद इसी रूप मे गांधी जी देश के लिये फिर कोइ कमाल कर दें।

एक बार फ़िर से दशहरा और आने वाली दीवाली की ढेर सारी शुभकामनायें।

Sunday, October 01, 2006

दुर्गा पूजा

विद्यान्त कॉलेज,लखनऊ

लालबाग ,लखनऊ

पाठक रोड,मॉडेल हाउस,लखनऊ


आज दुर्गा अष्टमी थी ,,,,मन्दिर और दुर्गा पूजा पान्डाल हर जगह खूब भीड थी,,,,हर साल की तरह इस बार भी मै घूमने गया था,,,,कुछ पिक्स खींची है, आप भी देखिये, मोबाइल कैमरा से ली है इसलिये क्लियैरिटी बहुत ज्यादा नही है।
वैसे लखनऊ में बंगाली समुदाय काफी संख्या मे है, इसलिये दुर्गा पूजा यहां बहुत उत्साह से मनाइ जाती है। एक बार कलकत्ता मे दुर्गा पूजा देखने का मन है