Tuesday, October 03, 2006

वो लम्हे ...

कल दोपहर ३ बजे ललित का फ़ोन आया ,बोला सर जी कहां हैं,,"घर पर ही हूँ" ऐसा बस मैने बोला ही था कि तुरन्त एक नया प्रश्न ,,पिक्चर देखने चलेगा क्या... ?अच्छा पहले तो आप सबको बता दूं ललित भाइ मेरे बडे पुराने मित्र हैं इस समय तो बागलकोट,कर्नाटक से डाक्टरी पढ रहे हैं ।हां तो हम कहां थे,,,हाँ हम पिक्चर देखने जा रहे थे,,मै जल्दी जल्दी तैयार हुआ और लखनऊ के हजरत गंज स्थित सहारा गन्ज मॉल की तरफ़ चल पडा..प्लॉन यही निर्धारित हुआ था की हम लोग वहीं मिलेन्गें।वहां तो पहुँच गये ,,अब यह सोचना था कि पिक्चर कौन सी देखी ये... हमारे पास दो विकल्प थे ,, वो लम्हे और प्यार के साइड एफ़ेक्ट,, तो निर्धारित यह हुआ कि वो लम्हे देखी जायेगी क्यों कि ललित भाइ ने पिक्चर की कुछ तारीफ़ सुनी थी,,,,तो टिकट लेने के पश्चात थोडी देर मॉल में घूम कर हम लोग हाल में प्रवेश कर गये..वो लम्हे ....महेश भट्ट द्वारा लिखित इस फिल्म के लिये महेश भट्ट ने कहा है कि यह फिल्म परवीन बाबी के जीवन पर ,,और उनके जीवन की सच्ची घटनाओं पर आधारित है खास तौर पर यह फ़िल्म महेश भट्ट और परवीन बाबी के रिश्तों पर आधारित है....पर जहाँ तक मुझे लगा कि यदि आप यह सब भूल कर इस फ़िल्म को देखेंगे तो आपको यह फ़िल्म और ज्यादा अच्छी लगेगी...क्योंकि कि कइ बार फ़िल्म मे प्रदर्शित हर द्रश्य को आप परवीन बाबी से जोड्ने लगते हैं और तब वह वास्तविक नही लगता,पर जो भी यदि आपको शिनॉय अहूजा और कन्गना के अभिनय से सजी,एक कसी पट्कथा पर आधारित फ़िल्म देखनी हो तो इसे जरूर देखें।आप दोनो के अभिनय की तारीफ़ किये बिना नही रहेंगे।फ़िल्म का सन्गीत भी काफी अच्छा है।।कुल मिला कर यही कहूँगा की फ़िल्म एक बार जरूर देखिये,,,अच्छी फ़िल्म है

2 comments:

Pratik Pandey said...

हिन्दी ब्लॉग जगत् में आपका हार्दिक स्वागत् है। उम्मीद है आप निरन्तर हिन्दी में लेखन करते रहेंगे।

Abhishek Sinha said...

प्रतीक जी,उत्साहवर्धन के लिये धन्यवाद,,,कोशिश यही रहेगी कि निरन्तरता के साथ आप सबके समक्ष अपनी बात रखता रहूँ।