Monday, October 09, 2006

मेरी दादी के लिये,,

निश्च्छल सरल मधुर अविकल ,

पितामही तू सतत अविचल ,

स्नेहसिग्ध प्रतिमूर्त्ति रूप,

मम प्राणमयी तू मातृ रूप,

कर उर प्रकाशित दे ज्ञान धूप,

मम पितु जननी तू देवि रूप
मम पितु जननी तू देवि रूप
मम पितु जननी तू देवि रूप

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