बहुत दिन बीत गये थे कुछ लिखा नही था, तो सोचा चलो कुछ लिखा जाये और कुछ सुनाया भी जाये, समीर लाल जी धन्यवाद, ये सुनाना आपके प्रोत्साहन के कारण हो रहा है ,
आज जो मैं आपको सुनाने जा रहा हूँ, वह गीत मूल रूप में के. ऎल. सह्गल साहब ने गाया था। यह गीत फिल्म देवदास (1935) से है, और राग सिन्दूरा पर आधारित है। इस बन्दिश/गीत को मैने पहली पार, लता जी के एक कैसेट श्रद्धाजंलि में सुना था, और इस गीत को कुछ उसी तरह से गाने की कोशिश की है, गीत के बोल हैं ...........
बालम आन बसो मेरे मन में,
सावन आया अजहूँ ना आये,
तुम बिन रसिया कुछ ना भाये,
मन में मोरे हूक उठत जब,
कोयल कूकत बन में,
बालम आन बसो मेरे मन में।
सूरतिया जाकि मतवारी,
एक नया संसार बसा है,
जिनके दो नयनन मे,
बालम आन बसो मेरे मन में।
गीत के बोल और लताजी ने इसे जिस तरह से गाया था, पहली बार ही यह मेरे मन में एकदम बस सा गया था, और मैने इसे सीखा, और बहुत बार अपने परिजनों और मित्रों को सुना के तालिया और वाहवाही भी लूटी।
लीजिये मेरी (अभिषेक) की आवाज़ मे सुनिये बालम आन बसो मेरे मन में,,,,,,,,, और बताइये क्या मै आपके मन में कुछ ज़गह बना पाया ।
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3 comments:
वाह ,क्या बात है,मन मोह लिया गीत और आवाज़ दोनो ने……्सुन कर लग रहा है भातखण्डे की शि्क्षा पायी है आपने
bahut sandar, abhishek
itni door,subaha subaha tumhara gana sunkar anand aagaya.
didi
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